टुकडों में बिखरा हुआ

किसी का जिगर दिखायेंगे
कभी आना हमारी बस्ती
तुम्हे अपना घर दिखायेंगे
होंठ काँप जाते हैं
थरथरा जाती है जुबान
टूटे दिल से निकली हुई
आहों का असर दिखायेंगे
कभी आना हमारी बस्ती
तुम्हे अपना घर दिखायेंगे ...
एक पहुँच पाता नही की
एक और छलक जाता है
पलकों से दामन तक का
इन अश्कों का सफर दिखायेंगे

तुम्हे अपना घर दिखायेंगे ...
कहीं रखी है तस्वीर तेरी
कहीं लिखा है तेरा नाम

मन्दिर मस्जिद जैसा पाक
एक दीवार-ओ-दर दिखायेंगे
कभी आना हमारी बस्ती
तुम्हे अपना घर दिखायेंगे ...
अक्सर ताकती रहती हैं
सुनसान राहों को जो निगाहें
घर के दरवाज़े पर बैठी हुई
सपनों की वो नज़र दिखायेंगे
टुकडों में बिखरा हुआ
किसी का जिगर दिखायेंगे
कभी आना हमारी बस्ती
तुम्हे अपना घर दिखायेंगे...
nice !!!
ReplyDeletethank you
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